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ग़ज़ल
मा'नी-ए-दिल का करे इज़हार 'अकबर' किस तरह
लफ़्ज़ मौज़ूँ बहर-ए-कश्फ़-ए-मुद्दआ मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-तख़्लीक़-ए-सुख़न मसनद-ए-राहत पे हफ़ीज़
बाइस-ए-कश्फ़-ओ-करामात नहीं होती है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
गुम हो के हर जगह हैं ज़-ख़ुद रफ़्तगान-ए-इश्क़
उन की भी अहल-ए-कश्फ़-ओ-करामात ज़ात है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जो बुत-कदे में थे वो साहिबान-ए-कश्फ़-ओ-कमाल
हरम में आए तो कश्फ़-ओ-कमाल से भी गए
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
दिल जो टूटे हैं उन्हें जोड़ के दिखलाओ 'शहीद'
वर्ना इन कश्फ़-ओ-करामात में क्या रक्खा है
अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
तसव्वुर मुन्कशिफ़-अज़-बाम हो जाने से डरता हूँ
अता-ए-कश्फ़ के इत्माम हो जाने से डरता हूँ