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ग़ज़ल
गिला शिकवा हसद कीना के तोहफ़े मेरी क़िस्मत हैं
मिरे अहबाब अब इस से ज़ियादा और क्या देंगे
अनवर जलालपुरी
ग़ज़ल
सुराही गर्दन वो आबगीना फिर आगे सीना भी जूँ नगीना
भरा है जिस में तमाम कीना कि जूँ नगीना दमक रहा है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
फ़ित्ना-जू बेदाद-गर सफ़्फ़ाक ओ अज़्लम कीना-वर
गर्म-जंग ओ गर्म-क़त्ल ओ गर्म-कुश्तन आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
तमाशा देखना ग़ैरों के घर को फूँक कर कैसा
जो अपनी आग में जल जाए ख़ुद कीना उसी का है
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
वो कीना-तूज़ था 'मोमिन' तो दिल लगाया क्यूँ
कहो तो क्या तुम्हें ऐसी भली वो आन लगी
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
इसी में अमाँ है कि मैं उन के चेहरे पलट कर न देखूँ
पलटने की सूरत में ये कीना-परवर मुझे मार देंगे