aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "तमाशा"
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगेहोता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशाजाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता
अपना ख़ाका लगता हूँएक तमाशा लगता हूँ
वो बुलाएँ तो क्या तमाशा होहम न जाएँ तो क्या तमाशा हो
जम्अ' करते हो क्यूँ रक़ीबों कोइक तमाशा हुआ गिला न हुआ
ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिएये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए
बख़्शे है जल्वा-ए-गुल ज़ौक़-ए-तमाशा 'ग़ालिब'चश्म को चाहिए हर रंग में वा हो जाना
ऐ क़ातिलों के शहर बस इतनी ही अर्ज़ हैमैं हूँ न क़त्ल कोई तमाशा किए बग़ैर
मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा न बनेतू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं
बंद कर के मिरी आँखें वो शरारत से हँसेबूझे जाने का मैं हर रोज़ तमाशा देखूँ
वहशत-ए-ख़्वाब-ए-अदम शोर-ए-तमाशा है 'असद'जो मज़ा जौहर नहीं आईना-ए-ताबीर का
मैं नज़्अ' में हूँ आएँ तो एहसान है उन कालेकिन ये समझ लें कि तमाशा नहीं होता
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसेऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे
हर-चंद नहीं शौक़ को यारा-ए-तमाशाख़ुद को न सही मुझ को दिखाने के लिए आ
दीवाना बनाना है तो दीवाना बना देवर्ना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे
शबनम है कि धोका है कि झरना है कि तुम होदिल-दश्त में इक प्यास तमाशा है कि तुम हो
अ'र्ज़-ए-अलम ब-तर्ज़-ए-तमाशा भी चाहिएदुनिया को हाल ही नहीं हुलिया भी चाहिए
आ के कभी वीरानी-ए-दिल का तमाशा करइस जंगल में नाच रहे हैं मोर बहुत
तमाशा कि ऐ महव-ए-आईना-दारीतुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं
अब तुम आए हो मिरी जान तमाशा करनेअब तो दरिया में तलातुम न सुकूँ है यूँ है
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