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ग़ज़ल
हादसात-ए-दहर से मस्त-ओ-बे-ख़बर गया
जुस्तुजू-ए-शौक़ में दिल निखर निखर गया
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
क़दम यूँ बे-ख़तर हो कर न मय-ख़ाने में रख देना
बहुत मुश्किल है जान ओ दिल को नज़राने में रख देना
वासिफ़ देहलवी
ग़ज़ल
न बे-ख़तर रहो मुझ से कि दर्द-मंदों के
लबों पे नाला कोई बे-ख़तर नहीं आता
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
पाँव बढ़ा के चल दिया और मैं देखता रहा
आह शबाब-ए-बे-ख़तर हाए हँसी ख़ुशी के दिन