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ग़ज़ल
ख़िरद वालो जुनूँ वालों के वीरानों में आ जाओ
दिलों के बाग़ ज़ख़्मों के गुलिस्तानों में आ जाओ
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
मस्ती-ए-रिंदाना हम सैराबी-ए-मय-ख़ाना हम
गर्दिश-ए-तक़दीर से हैं गर्दिश-ए-पैमाना हम
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
आए हम 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' के नग़्मात के बा'द
'मुसहफ़'-ए-इश्क़-ओ-जुनूँ हुस्न की आयात के बा'द
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए
हज़ारों नामा-हा-ए-शौक़ अहल-ए-दिल के काम आए
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब
इंसाँ इंसाँ बहुत रटा है इंसाँ इंसाँ बनेगा कब
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिलदार बहुत
उन से दूर बसाई बस्ती जिन से हमें था प्यार बहुत
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ ग़ुल होती जाती है
मगर ज़ौक़-ए-जुनूँ की शोला-सामानी नहीं जाती
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
खुले हैं मश्रिक-ओ-मग़रिब की गोद में गुलज़ार
मगर ख़िज़ाँ को मयस्सर नहीं यक़ीन-ए-बहार
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
लग़्ज़िश-ए-गाम लिए लग़्ज़िश-ए-मस्ताना लिए
आए हम बज़्म में फिर जुरअत-ए-रिंदाना लिए
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ गुल होती जाती है
मगर ज़ौक़-ए-जुनूँ की शो'ला-सामानी नहीं जाती