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ग़ज़ल
ज़रा तक़दीर की गहराइयों में डूब जा तू भी
कि इस जंगाह से मैं बन के तेग़-ए-बे-नियाम आया
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कौन हम को जानता था उस जगह फिर भी मगर
सब से पीछे छुप के बज़्म-ए-शाह में बैठे थे हम
नासिरा ज़ुबेरी
ग़ज़ल
बदल जाएगा मेरा घर भी सहरा में किसी दिन
अगर मैं दश्त ही में ज़िंदगी करता रहूँगा
मिद्हत-उल-अख़्तर
ग़ज़ल
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो