आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "khap"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "khap"
ग़ज़ल
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इस फ़िक्र-ए-रोज़गार में सब खप गया दिमाग़
अब शा'इरी को चाहिए इक दूसरा दिमाग़
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
है हम से भी हो सकता जो कुछ न किया होगा
मजनूँ से जफ़ा-कश ने फ़रहाद से सर-खप ने
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
विक्रम
ग़ज़ल
निबाह लेते ज़माने से हम भी मर-खप कर
जो आप 'असर' के दिल में न राह कर लेते