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ग़ज़ल
न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है
न करम है हम पे हबीब का न निगाह हम पे अदू की है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कुछ दिन से इंतिज़ार-ए-सवाल-ए-दिगर में है
वो मुज़्महिल हया जो किसी की नज़र में है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मु'आफ़ कर मिरी मस्ती ख़ुदा-ए-अज़्ज़ा-व-जल
कि मेरे हाथ में साग़र है मेरे लब पे ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ये माना चश्म-ए-नम से क़ाफ़िले अश्कों के तर निकले
मज़ा तब है कि अश्कों की जगह ख़ून-ए-जिगर निकले
नूर अहमद शैख़
ग़ज़ल
न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया
जो बचे हैं संग समेट लो तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए
तिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
यूँ फ़ज़ा महकी कि बदला मिरे हमराज़ का रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सितम सिखलाएगा रस्म-ए-वफ़ा ऐसे नहीं होता
सनम दिखलाएँगे राह-ए-ख़ुदा ऐसे नहीं होता
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मुझे नक़्ल पर भी इतना अगर इख़्तियार होता
कभी फ़ेल इम्तिहाँ में न मैं बार बार होता