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ग़ज़ल
ख़्वाहिशों की नज़्र कर दूँ किस लिए अनमोल अश्क
कच्चे धागों में कोई मोती पिरो सकता नहीं
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
मोती हूँ तो फिर सोज़न-ए-मिज़्गाँ से पिरो लो
आँसू हो तो दामन पे गिरा क्यूँ नहीं देते
मुर्तज़ा बरलास
ग़ज़ल
शब-ए-हिज्राँ के माथे पर सवेरे फिर से रौशन हों
ये रुत गजरे पिरो जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
समीना सय्यद
ग़ज़ल
ज़िक्र करते हैं तिरा मुझ से ब-उन्वान-ए-जफ़ा
चारा-गर फूल पिरो लाए हैं तलवारों में
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
रिश्ता-ए-जाँ को सँभाले हूँ कि अक्सर तिरी याद
इस में दो-चार गुहर आ के पिरो जाती है
शानुल हक़ हक़्क़ी
ग़ज़ल
सब एक रंग में हैं मय-कदे के ख़ुर्द ओ कलाँ
यहाँ तफ़ावुत-ए-पीर-ओ-जवाँ नहीं होता