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ग़ज़ल
सीन ख़ाली है बड़ी शीन पे हैं नुक़्ता तीन
साद और ज़ाद में बस फ़र्क़ है इक नुक़्ते से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
वो जिस में बिछड़े हुए दिल लिपट के रोते हैं
मैं देखता हूँ किसी फ़िल्म का वो सीन बहुत
सिराज फ़ैसल ख़ान
ग़ज़ल
आवे नज़र जो लाम तो आवे ख़याल-ए-ज़ुल्फ़
जब सीन पढ़ के देखूँ हूँ दंदाँ मसीन को