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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मौसम मौसम यही रहा गर ख़ुशबू की तहक़ीर का रंग
सीसे की कलियाँ फूटेंगी अब लोहे की डालों में
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
तू वज़’ पर अपनी क़ाइम रह क़ुदरत की मगर तहक़ीर न कर
दे पा-ए-नज़र को आज़ादी ख़ुद-बीनी को ज़ंजीर न कर
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मैं तिरी तहक़ीर कर सकता नहीं ऐ ज़ब्त-ए-शौक़
मेरे सीने में रहेगा राज़ जो सीने में है
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
माना कि तुझ को ऐश की जन्नत नसीब है
तहक़ीर-ए-ग़म न कर कि ये ने'मत ख़ुदा की है
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
मुनइ'म जब तहक़ीर से देखे मेरे सूखे सूखे हाथ
पोंछ के पेशानी से पसीना अपने हाथ भिगो लूँ हूँ
रशीदा अयाँ
ग़ज़ल
तहक़ीर मिरी इस से सिवा बज़्म में क्या हो
मैं तुझ से मुख़ातिब तू फुलाँ-इब्न-ए-फुलाँ से
अहमद अक़ील
ग़ज़ल
नहीं कम-माएगी कुछ बाइ'स-ए-तहक़ीर ऐ 'अंजुम'
कनी हीरे की चलती है तो शीशे काट देती है