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नज़्म
मिरा तो कुछ भी नहीं है मैं रो के जी लूँगा
मगर ख़ुदा के लिए तुम असीर-ए-ग़म न रहो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मौज-ए-मुज़्तर थी कहीं गहराइयों में मस्त-ए-ख़्वाब
रात के अफ़्सूँ से ताइर आशियानों में असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
असर ये भी है इक मेरे जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ का
मिरा आईना-ए-दिल है क़ज़ा के राज़-दानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नग़्मा-ए-बुलबुल हो या आवाज़-ए-ख़ामोश-ए-ज़मीर
है इसी ज़ंजीर-ए-आलम-गीर में हर शय असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रूह को उस की असीर-ए-ग़म-ए-उल्फ़त न करूँ
उस को रुस्वा न करूँ वक़्फ़-ए-मुसीबत न करूँ
नून मीम राशिद
नज़्म
दुनिया में ले के शाह से ऐ यार ता-फ़क़ीर
ख़ालिक़ न मुफ़्लिसी में किसी को करे असीर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो जुनूँ जो आब-ओ-आतिश को असीर कर चुका था
वो ख़ला की वुसअ'तों से भी ख़िराज ले रहा है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मैं कि ख़ुद अपनी ही आवाज़ के शो'लों का असीर
मैं कि ख़ुद अपनी ही ज़ंजीर का ज़िंदानी हूँ
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
अपने शहपूर की रह देख रही हैं ये असीर
जिस के तरकश में हैं उम्मीद के जलते हुए तीर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अदना ग़रीब मुफ़्लिस शाह-ओ-वज़ीर ख़ुश हैं
मा'शूक़ शाद-ओ-ख़ुर्रम आशिक़ असीर ख़ुश हैं