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नज़्म
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
हर दासी के गीले बदन से उस की रूह भाप बन कर उड़ जाती
ला-ज़वाल क़ुर्बानी ख़ुदा क़ुबूल करता है
फ़ैसल सईद ज़िरग़ाम
नज़्म
वो गोया उस की ही इक पुर-नुमू डाली से निकली है
ये कड़वाहट की बातें हैं मिठास इन की न पूछो तुम
जौन एलिया
नज़्म
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के