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नज़्म
ख़्वाब अब हुस्न-ए-तसव्वुर के उफ़ुक़ से हैं परे
दिल के इक जज़्बा-ए-मासूम ने देखे थे जो ख़्वाब
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
पूछता है तो कि कब और किस तरह आती हूँ मैं
गोद में नाकामियों के परवरिश पाती हूँ मैं
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
ये किस ने फ़ोन पे दी साल-ए-नौ की तहनियत मुझ को
तमन्ना रक़्स करती है तख़य्युल गुनगुनाता है
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
शफ़क़ के रंग में है क़त्ल-ए-आफ़्ताब का रंग
उफ़ुक़ के दिल में है ख़ंजर लहू-लुहान है शाम
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
बहार-ए-हुस्न जवाँ-मर्ग सूरत-ए-गुल-ए-तर
मिसाल-ए-ख़ार मगर उम्र-ए-दर्द-ए-इश्क़ दराज़