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नज़्म
जब मर्ग फिरा कर चाबुक को ये बैल बदन का हाँकेगा
कोई नाज समेटेगा तेरा कोई गौन सिए और टाँकेगा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
फ़ज़ा में घुल से गए हैं उफ़ुक़ के नर्म ख़ुतूत
ज़मीं हसीन है ख़्वाबों की सरज़मीं की तरह
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरी फ़ज़ा दिल-फ़रोज़ मेरी नवा सीना-सोज़
तुझ से दिलों का हुज़ूर मुझ से दिलों की कुशूद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गूँजती है जब फ़ज़ा-ए-दश्त में बाँग-ए-रहील
रेत के टीले पे वो आहू का बे-परवा ख़िराम