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नज़्म
क्यूँ इशारा है उफ़ुक़ पर आज किस की दीद है
अलविदा'अ माह-ए-रमज़ाँ वो हिलाल-ए-ईद है
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
नज़्म
पहुँचता है हर इक मय-कश के आगे दौर-ए-जाम उस का
किसी को तिश्ना-लब रखता नहीं है लुत्फ़-ए-आम उस का
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
क़ल्ब ओ नज़र की ज़िंदगी दश्त में सुब्ह का समाँ
चश्मा-ए-आफ़्ताब से नूर की नद्दियाँ रवाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
बड़े ही शौक़ से मुझ को पढाती हैं लिखाती हैं
बड़े ही प्यार से जो पूछता हूँ वो बताती हैं