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नज़्म
फ़िक्र-ए-इंसाँ पर तिरी हस्ती से ये रौशन हुआ
है पर-ए-मुर्ग़-ए-तख़य्युल की रसाई ता-कुजा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क़ल्ब ओ नज़र की ज़िंदगी दश्त में सुब्ह का समाँ
चश्मा-ए-आफ़्ताब से नूर की नद्दियाँ रवाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तू शनासा-ए-ख़राश-ए-उक़्दा-ए-मुश्किल नहीं
ऐ गुल-ए-रंगीं तिरे पहलू में शायद दिल नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दलील-ए-सुब्ह-ए-रौशन है सितारों की तुनुक-ताबी
उफ़ुक़ से आफ़्ताब उभरा गया दौर-ए-गिराँ-ख़्वाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शुनीदन दास्ताँ मेरी
ख़मोशी गुफ़्तुगू है बे-ज़बानी है ज़बाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
निकला हूँ ख़ुद को ढूँडने इस का मगर है मुझ को ग़म
राह-ए-जुनूँ दराज़ है मेरा सफ़र क़दम क़दम
मीर यासीन अली ख़ाँ
नज़्म
सखी फिर आ गई रुत झूलने की गुनगुनाने की
सियह आँखों की तह में बिजलियों के डूब जाने की
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
फ़स्ल-ए-बहार आई मगर हम हैं और ग़म
हर सम्त से हैं घेरे हुए सदमा-ओ-अलम