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नज़्म
आ गया दिल में तिरे 'मीर-तक़ी-मीर' का सोज़
दे गया दर्द की लज़्ज़त तुझे 'दिल-गीर' का सोज़
हबीब जौनपुरी
नज़्म
आ भी जा, ताकि मिरे सज्दों का अरमाँ निकले
आ भी जा, कि तिरे क़दमों पे मिरी जाँ निकले
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
छाई है जो अब तक धरती पर उस रात से लड़ते आए हैं
दुनिया से अभी तक मिट न सका पर राज इजारा-दारी का
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
दीदा-ए-शौक़ न होगा तिरी जानिब निगराँ
अब न आएगी लबों तक मिरे फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
गुबार-ए-रहगुज़ार-ए-दहर में आलूदगी कब तक
मिरे ज़र्रीं तसव्वुर को बिसात-ए-कहकशाँ दे दे
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
मुहर थी वो किसी तारीक निहाँ-ख़ाने की
आज तक मिल न सकी बार-ए-तमन्ना से नजात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
निशान-ए-'मीर'-ओ-'ग़ालिब', 'दाग़' और 'साइल' अभी तक हैं
जो शमएँ बच गई हैं रौनक़-ए-महफ़िल अभी तक हैं