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नज़्म
अज़ीज़ क़द्रों पे जाँ-कनी की गिरफ़्त मज़बूत हो गई है
पतंग की तरह कट चुके हैं तमाम रिश्ते
मज़हर इमाम
नज़्म
सो गई रास्ता तक तक के हर इक राहगुज़ार
अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिए क़दमों के सुराग़