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नज़्म
कि अहदाफ़ का ये परिंदा कभी हाथ आया नहीं
दूसरों से कहीं तेज़ दौड़े हैं लेकिन कभी रेफ़री ने
इरफ़ान शहूद
नज़्म
हाथ चला भी जाए अंदर तो चवन्नी छुप जाती है
घर वाली को पकी हुई हाँडी पे कभी तो जब्र सा करना पड़ता है
अदीब सुहैल
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तू ने देखी है वो पेशानी वो रुख़्सार वो होंट
ज़िंदगी जिन के तसव्वुर में लुटा दी हम ने