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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

भगत राम

कृष्ण चंदर

भगत राम

कृष्ण चंदर

MORE BYकृष्ण चंदर

    अभी-अभी मेरे बच्चे ने मेरे बाएं हाथ की छंगुलिया को अपने दाँतों तले दाब कर इस ज़ोर का काटा कि मैं चिल्लाए बग़ैर ना रह सका और मैंने गु़स्सो में आकर उसके दो, तीन तमांचे भी जड़ दिए बेचारा उसी वक़्त से एक मासूम पिल्ले की तरह चिल्ला रहा है। ये बच्चे कम्बख़्त देखने में कितने नाज़ुक होते हैं, लेकिन उनके नन्हे-नन्हे हाथों की गिरिफ़्त बड़ी मज़बूत होती है। उनके दाँत यूँ दूध के होते हैं लेकिन काटने में गिलहरियों को भी मात करते हैं। इस बच्चे की मासूम शरारत से मेरे दिल में बचपन का एक वाक़ेआ उभर आया है, अब तक मैं उसे बहुत मामूली वाक़ेआ समझता था और अपनी दानिस्त में, मैं उसे क़त’अन भुला चुका था। लेकिन देखिए ये ला-शऊर का फ़ित्ना भी किस क़दर अजीब है। इसके साए में भी कैसे-कैसे खु़फ़िया अजाइब मस्तूर हैं। बज़ाहिर इतनी सी बात थी कि बचपन में मैंने एक दफ़ा अपने गाँव के एक आदमी ‘भगत रामֺ’ के बाएं हाथ का अँगूठा चबा डाला और उसने मुझे तमांचे मारने के बजाय सेब और आलूचे खिलाए थे। और बज़ाहिर मैं उस वाक़ए को अब तक भूल चुका था, लेकिन ज़रा इस भानमती के पिटारे की बवाल-अज़बियाँ मुलाहिज़ा फ़रमाईए।

    ये मामूली सा वाक़िया एक ख़्वाबीदा नाग की तरह ज़हन के पिटारे में दबा है और जूँ ही मेरा बच्चा मेरी छंगुलियां को दाँतों तले दबाता है और मैं उसे पीटता हूँ। ये पच्चीस, तीस साल का सोया हुआ नाग बेदार हो जाता है और फन फैलाकर मेरे ज़हन की चार-दीवारी में लहराने लगता है। अब कोई उसे किस तरह मार भगाए, अब तो दूध पिलाना होगा, ख़ैर तो वो वाक़आ भी सन लीजिए जैसा कि मैं अभी अर्ज़ कर चुका हूँ ये मेरे बचपन का वाक़आ है। जब हम लोग रंगपुर के गाँव में रहते थे। रंगपुर के गाँव तहसील जोड़ी का सदर मुक़ाम है, इसलिए उसकी हैसियत अब तक एक छोटे मोटे क़स्बे की है, लेकिन जिन दिनों हम वहां रहते थे रंगपुर की आबादी बहुत ज़्यादा ना थी। यही कोई ढाई तीन सौ घरों पर </