किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है
गुलशन से कोई फूल मयस्सर न जब हुआ
तितली ने राखी बाँध दी काँटे की नोक पर
बहनों की मोहब्बत की है अज़्मत की अलामत
राखी का है त्यौहार मोहब्बत की अलामत
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के ब'अद हाथ से मोती बिखर गए
याद आई जब मुझे 'फ़रहत' से छोटी थी बहन
मेरे दुश्मन की बहन ने मुझ को राखी बाँध दी
अज़ल से बरसे है पाकीज़गी फ़लक से यहाँ
नुमायाँ होवे है फिर शक्ल-ए-बहन में वो यहाँ
राखियाँ ले के सिलोनों की बरहमन निकलें
तार बारिश का तो टूटे कोई साअत कोई पल
बहन का प्यार माँ की मामता दो चीख़ती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिन को मैं अक्सर याद करता था