मैं अब के उस की बुनियादों में लाशें चुन रहा हूँ
इमारत कोई क़स्र-ए-दिल-बराना चाहती है
ग़ज़ल में प्रयुक्त काफ़िये
क्या दिन थे वो जो वाँ करम-ए-दिल-बराना था
अपना भी उस तरफ़ गुज़र आशिक़ाना था
ग़ज़ल में प्रयुक्त काफ़िये
सवाल मैं ने भी रक्खे गुज़ारिशों की तरह
बदल के उस ने भी अंदाज़-ए-दिल-बराना किया