रुख़्सत-ए-यार का मज़मून ब-मुश्किल बाँधा
रुख़्सत-ए-यार का मज़मून ब-मुश्किल बाँधा
दिल न बंधता था किसी तौर बड़ा दिल बाँधा
हम ने भी बाँध लिया ज़ीस्त का अस्बाब वहीं
जब सुना यार-ए-सफ़र-दार ने महमिल बाँधा
हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल
हम ने महताब को उस रुख़ के मुमासिल बाँधा
और क्या बाँधते सामाँ में ब-हंगाम-ए-सफ़र
सिर्फ़ दामन में ख़स-ए-कूचा-ए-क़ातिल बाँधा
हम जो हर गाम से पैमान-ए-वफ़ा बाँधते थे
आख़िरश हम ने भी अज़्म-ए-सर-ए-मंज़िल बाँधा
- पुस्तक : Quarterly TASTEER Lahore (पृष्ठ 154)
- रचनाकार : Naseer Ahmed Nasir
- प्रकाशन : Room No.-1,1st Floor, Awan Plaza, Shadman Market, Lahore (Issue No. 5,6 April To Sep. 1998)
- संस्करण : Issue No. 5,6 April To Sep. 1998
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