अनवर शऊर
ग़ज़ल 60
अशआर 58
फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था
वो मुझ से इंतिहाई ख़ुश ख़फ़ा होने से पहले था
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इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह
ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जगह
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बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है
हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है
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सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
ख़ुद बना लेती है होंटों पर हँसी अपनी जगह
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हास्य शायरी 3
चित्र शायरी 11
ये मत पूछो कि कैसा आदमी हूँ करोगे याद, ऐसा आदमी हूँ मिरा नाम-ओ-नसब क्या पूछते हो! ज़लील-ओ-ख़्वार-ओ-रुस्वा आदमी हूँ तआ'रुफ़ और क्या इस के सिवा हो कि मैं भी आप जैसा आदमी हूँ ज़माने के झमेलों से मुझे क्या मिरी जाँ! मैं तुम्हारा आदमी हूँ चले आया करो मेरी तरफ़ भी! मोहब्बत करने वाला आदमी हूँ तवज्जोह में कमी बेशी न जानो अज़ीज़ो! मैं अकेला आदमी हूँ गुज़ारूँ एक जैसा वक़्त कब तक कोई पत्थर हूँ मैं या आदमी हूँ 'शुऊर' आ जाओ मेरे साथ, लेकिन! मैं इक भटका हुआ सा आदमी हूँ