असलम अंसारी
ग़ज़ल 19
नज़्म 5
अशआर 12
किसे कहें कि रिफ़ाक़त का दाग़ है दिल पर
बिछड़ने वाला तो खुल कर कभी मिला ही न था
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दीवार-ए-ख़स्तगी हूँ मुझे हाथ मत लगा
मैं गिर पड़ूँगा देख मुझे आसरा न दे
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ख़फ़ा न हो कि तिरा हुस्न ही कुछ ऐसा था
मैं तुझ से प्यार न करता तो और क्या करता
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