जावेद सबा के शेर
मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें
ये लीजे आप का घर आ गया है हात छोड़ें
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ये जो मिलाते फिरते हो तुम हर किसी से हाथ
ऐसा न हो कि धोना पड़े ज़िंदगी से हाथ
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ये कह के उस ने मुझे मख़मसे में डाल दिया
मिलाओ हाथ अगर वाक़ई मोहब्बत है
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उस ने आवारा-मिज़ाजी को नया मोड़ दिया
पा-ब-ज़ंजीर किया और मुझे छोड़ दिया
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गुज़र रही थी ज़िंदगी गुज़र रही है ज़िंदगी
नशेब के बग़ैर भी फ़राज़ के बग़ैर भी
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तेरा मेरा कोई रिश्ता तो नहीं है लेकिन
मैं ने जो ख़्वाब में देखा है कोई देख न ले
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एक ही फूल से सब फूलों की ख़ुश्बू आए
और ये जादू उसे आए जिसे उर्दू आए
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देखे थे जितने ख़्वाब ठिकाने लगा दिए
तुम ने तो आते आते ज़माने लगा दिए
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उस ने आँचल से निकाली मिरी गुम-गश्ता बयाज़
और चुपके से मोहब्बत का वरक़ मोड़ दिया
शाइरी कार-ए-जुनूँ है आप के बस की नहीं
वक़्त पर बिस्तर से उठिए वक़्त पर सो जाइए
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आप से अब क्या छुपाना आप कोई ग़ैर हैं
हो चुका हूँ मैं किसी का आप भी हो जाइए
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जाने वाले ने हमेशा की जुदाई दे कर
दिल को आँखों में धड़कने के लिए छोड़ दिया
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ऐ बे-ख़ुदी सलाम तुझे तेरा शुक्रिया
दुनिया भी मस्त मस्त है उक़्बा भी मस्त मस्त
डर रहा हूँ कि सर-ए-शाम तिरी आँखों में
मैं ने जो वक़्त गुज़ारा है कोई देख न ले
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वहशत का ये आलम कि पस-ए-चाक गरेबाँ
रंजिश है बहारों से उलझते हैं ख़िज़ाँ से
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ये जो महफ़िल में मिरे नाम से मौजूद हूँ मैं
मैं नहीं हूँ मिरा धोका है कोई देख न ले
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मद्धम मद्धम साँस की ख़ुश-बू मीठे मीठे दर्द की आँच
रह रह के करती है बेकल और मैं लिखता जाता हूँ
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बर तरफ़ कर के तकल्लुफ़ इक तरफ़ हो जाइए
मुस्तक़िल मिल जाइए या मुस्तक़िल खो जाइए
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