नोमान शौक़
ग़ज़ल 124
नज़्म 10
अशआर 87
रेल देखी है कभी सीने पे चलने वाली
याद तो होंगे तुझे हाथ हिलाते हुए हम
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तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
देखते रहते हैं दीवार से जाते हुए हम
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जम्हूरियत के बीच फँसी अक़्लियत था दिल
मौक़ा जिसे जिधर से मिला वार कर दिया
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एक दिन दोनों ने अपनी हार मानी एक साथ
एक दिन जिस से झगड़ते थे उसी के हो गए
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