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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बचपन पर नज़्में

कला और कलाकार की कल्पना-शक्ति

बहुत बलवान होती है। कल्पना-शक्ति के सहारे ही कलाकार नई दुनिया की सैर करता है और गुज़रे हुए वक़्त की यादों को भी शिद्दत के साथ अपनी रचना में बयान करता है। बचपन के सुंदर और कोमल एहसास,उसकी मासूमियत और सच्चे-पन को अपनी रचना में चित्रित करना आसान नहीं होता। लेकिन शायरी जैसी विधा में बचपन के इस एहसास की तर्जुमानी भी की गई है। शायरी या कोई भी रचनात्मक शैली की अपनी सीमा है। इसलिए भाषा की सतह पर बचपन के एहसाह को बयान करने में शायरी की अपनी लाचारी भी है ।बचपन के एहसास से ओत-प्रोत शायरी हमारी इसी नाचारी का बदल है।

राजा रानी की कहानी

आओ बच्चो सुनो कहानी

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

मेरा ख़ुदा

जिस ने बनाई दुनिया

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

बरसात

बरखा आई बादल आए

सीमाब अकबराबादी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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