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सय्यद सुलैमान नदवी

1884 - 1953 | आज़मगढ़, भारत

सय्यद सुलैमान नदवी

लेख 4

 

उद्धरण 2

इंसान जानवरों को तो लगाम लगाकर अपना ताबे'दार बनाते हैं लेकिन जब एक इंसानी क़ौम दूसरी इंसानी क़ौम को अपना ताबे'दार‏‎ ‎बनाती है, तो गो उसके मुँह में लोहे की लगाम नहीं लगाती ताहम उसके मुँह में एक लगाम लगा देती है जिसका नाम बिदेसी ‎‏ज़बान ‎है। इंसान के तमाम आमाल उस के ख़यालात के मातहत हैं, ख़यालात की रूह अलफ़ाज़ के जिस्म में जलवागर होती ‎‏है। अलफ़ाज़ ‎ज़बान का दूसरा नाम है, इसलिए किसी दूसरी क़ौम की ज़बान के मआ'नी उस क़ौम का तमद्दुन तारीख़, मज़हब, जज़बात हर‏‎ चीज़ ‎हैं।

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हिन्दुस्तान को अगर एशिया के दूसरे मुल्कों के साथ ताल्लुक़ात बर-क़रार रखने हैं, तो उसको अपनी जिस ज़बान के ज़रिए' उन‏‎ ‎तअ'ल्लुक़ात का रिश्ता मज़बूत करना होगा, वो उर्दू है।

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नअत 1

 

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