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नज़्म
'इक़बाल' के मज़ार पर
ब-ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार-ए-मस्जिद है जो आसूदा
ये ख़ाकी जिस्म है सत्तर बरस का राह पैमूदा
हफ़ीज़ जालंधरी
कुल्लियात
क्या मैं भी परेशानी-ए-ख़ातिर से क़रीं था
आँखें तो कहीं थीं दिल-ए-ग़म-दीदा कहीं था
मीर तक़ी मीर
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कुल्लियात
उचटती सी लगी अपने तो वो तलवार या क़िस्मत
हुए जिस के लगे कार-आमदा बेकार या क़िस्मत
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
छानता है ख़ाक क्या तू घर बनाने के लिए
फ़िक्र रहने की न कर आया है जाने के लिए
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
गुम्बद-ए-मदफ़न है या है आसमाँ बाला-ए-सर
ये मकीं रखते हैं सब अपने मकाँ बाला-ए-सर
रियाज़ ख़ैराबादी
नज़्म
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब नक़्श-गर-ए-हादसात
सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब अस्ल-ए-हयात-ओ-ममात
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'करामत'-ए-हज़ीं फ़रार हो के हाल-ए-ज़ार से
गुज़िश्ता अहद से मिला तो वो लगा है हाल सा