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अमानत अली ख़ान

1922 - 1974 | लाहौर, पाकिस्तान

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अमानत अली ख़ान

अमानत अली ख़ान

Aksar shab-e-tanhai mein kuch der

अमानत अली ख़ान

ik khalish ko: amanat ali ادیب سہارنپودی: اک خلش کو: امانت علی

अमानत अली ख़ान

kausar niazi: kabhi jo nakhate: amanat ali khan

अमानत अली ख़ान

चाँद मेरी ज़मीन फूल मेरा वतन

चाँद मेरी ज़मीं फूल मेरा वतन अमानत अली ख़ान

तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है

अमानत अली ख़ान

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते

अमानत अली ख़ान

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया

अमानत अली ख़ान

सुकूत-ए-शब से इक नग़्मा सुना है

अमानत अली ख़ान

होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए

अमानत अली ख़ान

rone se aur ishq mein bebak ho gae

अमानत अली ख़ान

आज तुझे क्यूँ चुप सी लगी है

अमानत अली ख़ान

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

अमानत अली ख़ान

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

अमानत अली ख़ान

ऐ दिला हम हुए पाबंद-ए-ग़म-ए-यार कि तू

अमानत अली ख़ान

ऐ दिला हम हुए पाबंद-ए-ग़म-ए-यार कि तू

अमानत अली ख़ान

कभी जो निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-निगार आई है

अमानत अली ख़ान

किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ए-निहाँ नहीं है

अमानत अली ख़ान

ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया

अमानत अली ख़ान

जो गुज़री मुझ पे मत उस से कहो हुआ सो हुआ

अमानत अली ख़ान

तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है

अमानत अली ख़ान

मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं

अमानत अली ख़ान

होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए

अमानत अली ख़ान

मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए

अमानत अली ख़ान

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है

अमानत अली ख़ान

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

अमानत अली ख़ान

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