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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : शौकत थानवी

प्रकाशक : अननोन आर्गेनाइजेशन

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : हास्य-व्यंग

उप श्रेणियां : गद्य/नस्र

पृष्ठ : 131

सहयोगी : हैदर अली

bahr-e-tabassum
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पुस्तक: परिचय

زود نویس ادیب شوکت تھانوی نے کئی اصناف سخن میں کامیاب طبع آزمائی کی ہے۔ناول ،افسانہ ،صحافت، مضمون نویسی،ڈرامہ نگاری اور طنزو مزح نگاری وغیرہ ۔ انھیں ہر صنف میں یکساں مقبولیت حاصل ہوئی۔ان کے مزاحیہ مضامین کی تعداد افسانوں سے کہیں زیادہ ہے۔ادب میں ان کا بنیادی رجحان مزاح نگاری کی طرف زیادہ رہا ،یہی وجہ ہے کہ ان کی ہر تحریر میں مزاح کے رنگ غالب ہیں۔عموما شوکت کی مزاح نگاری کے پس پردہ کوئی اصلاحی مقصد یا اخلاقی فلسفہ نظر نہیں آتا بلکہ وہ ایک معمولی موضوع میں الفاظ کے ذریعے مزاح پیدا کر کے قارئین کو ہنسانے کی کوشش کرتے ہیں۔زیر مطالعہ شوکت تھانوی کے ان ہی طنز ومزاحیہ مضامین پر مشتمل "بحر تبسم " ہے ۔جس میں ان کے مضامین منشی،چائے، ماسٹر صاحب،میز،ایڈیٹر ،السلام علیکم وغیرہ شامل ہیں۔جو نہایت ہی پرلطف اور دلچسپ ہیں۔

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लेखक: परिचय

इतनी लोकप्रियता कम कृतियों को नसीब होती है जितनी शौकत थानवी की हास्य कहानियों  “स्वदेशी रेल” को नसीब हुई। हास्यास्पद घटनाएँ सुना कर हंसाने की कला उन्हें ख़ूब आती है। उनके यहाँ गहराई न सही मगर आम लोगों को हंसाने की सामग्री ख़ूब मिल जाती है। लगभग चालीस किताबें लिख कर उन्होंने उर्दू के हास्य साहित्य में बहुत इज़ाफ़ा किया।

उनका असली नाम मोहम्मद उमर, पिता का नाम सिद्दीक़ अहमद, जन्म वर्ष 1905ई. और जन्म स्थान वृन्दावन था क्योंकि उनके पिता यहाँ कोतवाल के पद पर नियुक्त थे, हालाँकि उनका वतन थाना भवन ज़िला मुज़फ़्फ़र नगर था। मुहम्मद उमर ने जब शौकत क़लमी नाम रखा तो वतन की मुनासबत से उसपर थानवी इज़ाफ़ा किया। उर्दू, फ़ारसी की आरंभिक शिक्षा घर पर हुई और बड़ी मुश्किल से हुई क्योंकि वो पढ़ने के शौक़ीन नहीं थे।

पिता नौकरी से रिटायर हुए तो उनके साथ भोपाल और फिर लखनऊ चले आए। माता-पिता ने स्थायी निवास के लिए उसी जगह का चयन कर लिया था। यहीं शौकत थानवी की रचनात्मक क्षमता को फलने फूलने का मौक़ा मिला। उन्होंने अपनी रचनाओं के लिए हास्य को चुना। सन्1932 के आस-पास हास्य कहानी “स्वदेशी रेल” लिखी तो प्रसिद्धि चारों तरफ़ फैल गई। उसी प्रसिद्धि के कारण ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी मिल गई। निधन से पहले पाकिस्तान चले गए थे। वहाँ भी रेडियो की नौकरी मिल गई थी। सन्1963 में लाहौर में उनका निधन हुआ।

शब्दों के उलट-फेर से, लतीफों से रिआयत लफ़्ज़ी से, मुहावरे से, वर्तनी की अनियमितताओं और ज़्यादातर हास्यपूर्ण घटनाओं से शौकत थानवी ने हास्य पैदा करने की कोशिश की। उनके हास्य-व्यंग्य में गहराई नहीं बल्कि सतही हैं। उच्च स्तरीय रचना बहुत सोच विचार और कड़ी मेहनत के बाद ही अस्तित्व में आसकती है। शौकत थानवी के यहाँ इन दोनों चीज़ों की कमी है। उनकी रचनाओं की संख्या चालीस के क़रीब है। इतना ज़्यादा लिखने वाला न सोचने के लिए समय निकाल सकता है और न अपनी रचनाओं में संशोधन कर सकता है। हास्य को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत न किया जाए तो वो हंसाने की एक नाकाम कोशिश बन के रह जाती है। शौकत हंसाने में तो कामयाब हैं मगर पाठक को सोच विचार करने पर मजबूर नहीं करते, हालाँकि उनके लेखन में उद्देश्य मौजूद है। वो सामाजिक बुराइयों और मानवीय जीवन चरित की असमानताओं को दूर करना चाहते हैं। इसलिए उन पर हंसते हैं और उनका मज़ाक़ उड़ाते हैं। स्वदेशी रेल, ताज़ियत और लखनऊ कांग्रेस सेशन उनकी कामयाब कोशिशें हैं।

मौज-ए-तबस्सुम, बह्र-ए-तबस्सुम, सैलाब, तूफ़ान-ए-तबस्सुम, सौतिया चाह, कार्टून, बदौलत, जोड़तोड़, ससुराल उनकी मशहूर किताबें हैं। उन्होंने शायरी भी की, रेडियो ड्रामे भी लिखे और “शीश महल” के नाम से रेखाचित्रों का एक संग्रह भी प्रस्तुत किया।

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