aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
मो आरिफ इकबाल दरभंगा (बिहार) के एक प्रसिद्ध पत्रकार और काॅलम्निस्ट हैं। वे एक शिक्षित परिवार से संबंध रखते हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मदरसा इम्दादिया दरभंगा और मदरसा इस्लामिया जामे-उल-उलूम मुजफ्फरपुर से पूरी की। बाद में उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी और जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा प्राप्त की, जबकि दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। आरिफ इकबाल ने अपने पत्रकारिता कैरियर की शुरुआत पटना से प्रकाशित होने वाला दैनिक समाचार पत्र ‘‘कौमी तन्जीम’’ से की और देश की प्रमुख मीडिया संस्थान "ज़ी न्यूज़", "इंडिया न्यूज" के बाद "ई॰टी॰वी॰ भारत उर्दू" जैसे प्रमुख चैनलों के साथ काम करते हुए उर्दू पत्रकारिता में अपनी अनूठी पहचान बनाई। अल्पसंख्यक अधिकारों, सांस्कृतिक और साहित्यिक मुद्दों पर केंद्रित उनकी रिपोर्टिंग ने न केवल बिहार में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें लोकप्रियता दिलाई है। विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित उनके काॅलम राईटिंग और सौ से अधिक आलेखों के कारण वे विद्वानों के बीच प्रतिष्ठित हैं।
उन्होंने अब तक चार पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें ‘‘बातें मीर-ए-कारवां की’’, मौलाना अबू अख़्तर क़ासमी हयात-व-खिदमात", "मिटती हुई तहज़ीब का नौहा" और ‘‘अमीर-ए-शरीयत सादिस" शामिल हैं। आरिफ इकबाल पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में बहुत आगे जाने की क्षमता रखते हैं। वह वर्तमान में +2 हाई स्कूल मुरिया, दरभंगा में उर्दू शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं।