aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
گلشن ہند، تذکرۀ شعراے اردو از سیّد حیدر بخش حیدری دہلوی جس کو مختارالدّین احمد نے مرتب کیا، یہ تذکرہ مرزا علی لطف والے گلشن ہند سے مختلف ہے۔ کیونکہ مرزا لطف کا تذکرہ کافی تفصیلی ہے جبکہ یہ تذکرہ بہت مختصر ہے۔
हैदरी फोर्ट विलियम कॉलेज के लेखकों में सबसे ज़्यादा किताबों के लेखक व अनुवादक हैं। गद्यकार होने के साथ साथ वो शायर भी हैं लेकिन उनकी शोहरत गद्य लेखन पर ही आधारित है।
उनका नाम हैदर बख़्श और तख़ल्लुस हैदरी है। सय्यद अबुलहसन के बेटे थे और दिल्ली के रहने वाले थे। हैदर बख़्श ने अभी बचपन से आगे क़दम नहीं रखा था कि उनके वालिद को ऐसी आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा कि मजबूरन दिल्ली छोड़कर सपरिवार बनारस चले गए। यहाँ नवाब इब्राहीम ख़ां नाज़िम अदालत थे। वो इस परिवार की मदद के लिए राज़ी हुए। उन्होंने ही हैदर बख़्श की शिक्षा का बंदोबस्त कर दिया। बनारस के मशहूर मदरसों में उन्होंने प्रचलित शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा प्राप्ति के बाद दफ़्तर अदालत के दफ़्तर में मुलाज़िम हो गए।
नौकरी के साथ साथ अध्ययन और लिखना व रचना करना जारी रखा। हैदरी ने क़िस्सा मेहर-ओ -माह के नाम से एक कहानी लिखी और अठारहवीं सदी के आख़िर में उसे लेकर कलकत्ता चले गए। वहाँ गिलक्रिस्ट की सेवा में उपस्थित हुए और अपनी किताब पेश की जिसे उन्होंने बहुत पसंद किया और मुंशी की हैसियत से हैदरी को कॉलेज के कर्मचारियों में सम्मिलित कर लिया। वहाँ रह कर उन्होंने बहुत सी किताबें लिखीं और अनुवाद किए। अंततः नौकरी से सेवानिवृत हो कर बनारस वापस चले गए। वहाँ 1823ई. में देहांत हुआ।
शायरी के अलावा उन्होंने जो किताबें लिखीं उनमें से अहम हैं, “किस्सा-ए-महर-ओ-माह”, “लैला मजनूं”, “हफ्त पैकर”, “तारीख़ नादिरी”, “गुलशन-ए-हिंद”, “तोता कहानी”, “आराइश-ए-महफ़िल” और “गुल-ए-मग़फ़िरत।” इनमें से आख़िरी तीन किताबों ने बहुत प्रसिद्धि पाई।
“तोता कहानी” सय्यद मुहम्मद क़ादरी की एक फ़ारसी किताब का अनुवाद है। संस्कृत की एक पुरानी किताब का मौलाना ज़ियाउद्दीन बख़्शी ने फ़ारसी में अनुवाद किया। क़ादरी ने इसे सारांशित किया। इस सारांश को हैदरी ने उर्दू का रूप दे दिया। यह किताब बहुत लोकप्रिय हुई और विभिन्न भाषाओँ में इसके अनुवाद हुए।
“आराइश-ए-महफ़िल” हातिमताई के फ़ारसी क़िस्से का अनुवाद और सारांश है। मुल्ला हुसैन वाइज़ काशफ़ी की किताब रौज़ा-उल-शहदा का एक अनुवाद तो फ़ज़ली ने “कर्बल कथा” के नाम से किया था। दूसरा अनुवाद और सारांश हैदरी की “आराइश-ए-महफ़िल” है। मीर अमन का रुजहान बोल-चाल की ज़बान और हिन्दी की तरफ़ ज़्यादा है। इसके विपरीत हैदरी का झुकाव फ़ारसी की तरफ़ है।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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