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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : हफ़ीज़ जालंधरी

प्रकाशक : इत्तिहाद प्रेस बुल रोड, लाहौर

प्रकाशन वर्ष : 1941

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : बाल-साहित्य

उप श्रेणियां : नज़्म

पृष्ठ : 79

सहयोगी : उमैर मंज़र

हफ़ीज़ के गीत और नज़्में
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पुस्तक: परिचय

حفیظ جالندھری گیت کے علاوہ نظم اور غزل دونوں کے قادرالکلام شاعر تھےانھوں نے بچوں کیلئےسینکڑوں گیت اور نظمیں لکھی،ن کی لکھی گئی نظم ‘ابھی تو میں جوان ہوں’ آج بھی عوام میں بے حد مقبول ہے، جسے نامور گلوکارہ ملکہ پکھراج کی بے مثل گائیکی کی وجہ سے خاص و عام میں شہرت ملی۔زیر نظر کتاب بھی چوتھی جماعت کے بچوں کے لئے لکھی گئی کتاب ہے جس میں بچوں کے لئے لکھے گئے گیت اور نظمیں شامل ہیں ۔

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लेखक: परिचय

मुहम्मद हफ़ीज़ नाम, हफ़ीज़ तख़ल्लुस,1900ई. में जालंधर में पैदा हुए। शे’र-ओ-शायरी से स्वाभाविक रूप से लगाव था। छोटी अवस्था में ही इस तरफ़ मुतवज्जा हुए और शे’र कहने लगे मौलाना ग़ुलाम क़ादिर गिरामी के शिष्य हो गए। 

वो काव्य रचना जिसने हफ़ीज़ को अमर बना दिया “शाहनामा-ए-इस्लाम” है। फ़ारसी में तो शाहनामा-ए-फ़िरदौसी और मसनवी मौलाना रोम जैसी बलंद उत्कृष्ट नज़्में मौजूद हैं। मुक़द्दमा-ए- शे’र-ओ-शायरी में मौलाना हाली ने इस पर दुख व्यक्त किया है कि उर्दू में कोई उत्कृष्ट मसनवी मौजूद नहीं। “शाहनामा-ए-इस्लाम” के प्रकाशन से यह आपत्ति किसी हद तक दूर हो गई है।

ऐतिहासिक घटनाओं को पद्बद्ध करना और विशेष रूप से ऐसी घटनाओं को जिनसे मज़हब का सम्बंध हो और जिनसे किसी समुदाय की भावनाएं जुड़ी हों, एक मुश्किल काम है। किसी घटना के वर्णन में असलियत से सिरे से विचलन होतो पाठकों की झुंझलाहट का कारण हो सकते हैं और विचलन न हो तो कोई आकर्षण पैदा नहीं होता। हफ़ीज़ ने इस लम्बी नज़्म में घटनाओं को बिना घटाए बढ़ाए बयान किया है। लेकिन लेखन शैली ऐसी है कि आकर्षण में कमी नहीं आई। विद्वान मानते हैं कि रूखापन और गद्यात्मकता इस नज़्म से कोसों दूर है। नज़्म में कई ऐसे स्थान हैं जिनसे पाठक की आस्था के जोश को प्रेरणा मिलती है और उसके दिल में एक जूनून पैदा होजाता है।

हफ़ीज़ ने ग़ज़लें भी कहीं मगर ये पारंपरिक ढंग की हैं और लगभग प्रभावहीन, कुछ जगह शायर और निराशा प्रभावी हो जाता है। दुख की अनुभूति बहुत तीव्र होती है और पढ़ने वाले को अपने वश में कर लेती है मगर ये ग़ज़लें इस विशेषता से भी वंचित हैं। संभवतः इसका सबब ये है कि यह दुख उनका अपना दुख नहीं है मात्र सुनी सुनाई बातें हैं।

हफ़ीज़ ने नज़्में भी लिखी हैं। उनकी नज़्मों के कई संग्रह प्रकाशित हुए हैं जैसे, ''नग़्मा-ए-राज़ और ''सोज़-ओ-साज़''। उन नज़्मों में कोई दार्शनिक गहराई तो नज़र नहीं आती लेकिन लेखन शैली आकर्षक है। नज़्मों में उन्होंने नए प्रयोग तो नहीं किए मगर प्राचीन रूपों का प्रयोग बड़े सलीक़े से किया है, गेय बहरें इस्तेमाल कीं हैं, हल्के मीठे शब्दों का चयन किया है और अपनी नज़्मों को आनंद का स्रोत बना दिया है।

उन्होंने गीत भी लिखे और ऐसे गीत लिखे जो तासीर से लबरेज़ हैं। यहाँ भी उनकी कामयाबी का राज़ है छोटी, सब और रवां बहरों का चयन। ऐसे लफ़्ज़ों का इस्तेमाल जो कानों को प्रभावित करते हैं। टूटी हुई कश्ती का मल्लाह और शहसवार कर्बला उनमें ख़ासतौर पर क़ाबिल-ए-ज़िक्र हैं।

कलाम का नमूना मुलाहिज़ा हो;
अपने वतन में सब कुछ है प्यारे
रश्क-ए-अदन है बाग़-ए-वतन भी
गुल भी हैं मौजूद गुल-ए-पैरहन भी
नाज़ुक दिलाँ भी ग़ुंचा-ए-दहन भी
अपने वतन में सब कुछ है प्यारे

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