aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
पंडित उदित नारायण शिव पूरी चकबस्त के बेटे पंडित ब्रिज नारायण चकबस्त, चकबस्त के नाम से जाने गए। वो 1882 में फैजाबाद में पैदा हुए। पिता भी शायर थे और यक़ीन के उपनाम से लिखते थे । वो पटना में डिप्टी कमिश्नर थे । काली दास गुप्ता रज़ा को यक़ीन के बाईस शेर मिले जो कुल्लियात-ए-चकबस्त में दर्ज हैं। इस से अधिक कलाम नहीं मिलता। एक शे'र अफ़ज़ाल अहमद को भी मिला था।गुप्ता रज़ा के अनुसार वह एक निपुण शायर थे। उन्हीं का एक शे'र है निगाह-ए-लुत्फ़ से ए जां अगर नज़र करते,तुम्हारे तीरों से अपने सीना को हम सपर करते ।यक़ीन तरुण नाथ बख्शी दरिया लखनवी से परामर्श करते थे। चकबस्त जब पांच साल के थे पिता की मृत्यु (1887) हो गई। बड़े भाई पंडित महाराज नारायण चकबस्त ने उनकी शिक्षा में रुचि ली। चकबस्त ने 1908 में कानून की डिग्री ली और वकालत शुरू की। राजनीति में भी रुचि लेते रहे और गिरफ्तारी भी हुए। कहते हैं 9 साल की उम्र से शे'र कहने लगे थे। बारह साल की उम्र में कलाम में परिपक्वता आ चुकी थी। मसनवी गुलजार-ए-नसीम पर उनका का वाद विवाद यादगार है। चकबस्त ने पहली नज़्म एक बैठक में 1894 में पढ़ी। कहीं कहीं चकबस्त के एक नाटक कमला का उल्लेख भी मिलता है। रामायण के कई सीन नज़्म किए, लेकिन उसे पूरा न कर सके ।12 फ़रवरी 1926 को एक मुकदमा से लौटते हुए स्टेशन पर उनका देहांत हो गया ।
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