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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : मीराजी

प्रकाशक : आज की किताबें, कराची

प्रकाशन वर्ष : 2002

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : टिप्पणी, शोध एवं समीक्षा, शाइरी

उप श्रेणियां : नज़्म तन्क़ीद, संकलन

पृष्ठ : 234

ISBN संख्यांक / ISSN संख्यांक : 969-8379-57-6

सहयोगी : अजमल कमाल

इस नज़्म में
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पुस्तक: परिचय

میراجی جدید نظم کے بنیاد گزار شاعروں میں سے ہیں ،ایک بڑے تخلیق کار کی حیثیت سے ان کی شناخت عام ہے لیکن کم لوگ میراجی کی نثر سے واقف ہیں ۔میراجی نے بہت سے ترجمے بھی کئے۔ دامودر گپت کی شعری تخلیق نٹنی متتم کا نثری ترجمہ نگارخانہ کے نام سے کیا ۔لیکن میراجی کے ان کارناموں کےحوالے سے لوگوں کا عمومی رویہ ناواقفیت کا ہی رہا ہے ۔میراجی کی اس کتاب کے ساتھ بھی ہوا ۔ہم ریختہ ای بک کی خصوصی پیشکش کے تحت آپ تک یہ کتاب پہنچا رہے ہیں ۔اس کتاب میں شامل نظموں کے تجزئے صلاح الدین کے ماہنامہ ادبی دینا میں چھپتے تھے ۔میراجی کا طریقہ کاریہ تھا کہ وہ ہر ماہ اس وقت لکھی جانے والی نظموں میں سے کسی ایک نظم کا انتخاب کرتے تھے اور اس پر اپنے خیالات کا اظہارکرتے تھے۔حلقہ ارباب ذوق کی نششتوں میں بھی نظموں کے تجزئے کئے جاتے تھے ۔دراصل اس زمانے میں ترقی پسند فکر کی شدت پسندی کی بنا پر کسی فن پارے کو پرھنے سمجھنے اور اس کی تعیین قدر کے پیمانے ادبی اور تخلیقی سے زیادہ غیر ادبی اور غیر تخلیقی ہو گئے تھے ،میراجی کی ان تحریرں نے کسی فن پارے پر مکالمے میں ادبی اور تخلیقی حوالوں کو مطالعے کی اساس کے طور پر قائم کیا ۔آپ یہ کتاب پڑھئے اور اپنی رائے کا اظہار کیجئے۔

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लेखक: परिचय

मीराजी उर्दू के उन शायरों में शुमार होते हैं जिन्होंने अलामती शायरी को नया अंदाज़ और फ़रोग़ दिया। नून मीम राशिद का मानना था कि मीराजी महज़ शायर नहीं बल्कि एक अदबी मज़हर थे।
मीराजी का असल नाम मोहम्मद सनाउल्लाह डार था। उनकी पैदाइश 25 मई 1912 को लाहौर में हुई। कश्मीरी मूल के ख़ानदान से तअल्लुक़ रखने वाले मीराजी ने इल्मी-ओ-अदबी माहौल में परवरिश पाई। इब्तिदाई तालीम के बाद वो अदबी दुनिया के मारूफ़ जरीदे “अदबी दुनिया” से मुंसलिक हुए, जहाँ उन्होंने मज़ामीन लिखे और मशरिक़-ओ-मग़रिब के शायरों के तराजुम किए।
मीराजी की शायरी इंसानी शुऊर और तहतुश्शुऊर की कैफ़ियतों को नई ज़बान और अलामतों के ज़रीए पेश करती है। उनके कलाम में हिन्दुस्तानी तहज़ीब की झलक नुमायाँ है। उनकी तख़लीक़ात में 223 नज़्में, 136 गीत, 17 ग़ज़लें और मुख़्तलिफ़ तराजुम शामिल हैं। 3 नवंबर 1949 को बंबई में उनका इंतिक़ाल हुआ, मगर उनकी शायरी आज भी उर्दू अदब में एक मुन्फ़रिद मक़ाम रखती है।

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