by शाह वलीउल्लाह मोहद्दिस देहलवी
izaalat-ul-khafa 'an khilafat-ul-khulafa
Volume-001
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
Volume-001
علماء کرام نے خلفاء راشدین اور خلافت کے موضوع اور اس کے فضائل پر بے شمار کتابیں لکھی ہیں۔ مذکورہ کتاب بھی اپنے موضوع پر لاثانی کتاب ہے جو دو حصوں پر منقسم ہیں۔ پہلے حصہ کا نام مقصد اول اور دوسرے حصہ کا نام مقصد دوم۔ پہلے میں آیات قرآنیہ اور احادیث نبویہ اوردلایل عقلیہ سے خلفاء راشدین کی خلافت کا برحق ہونا ثابت کیا گیا ہے جبکہ دوم میں خلفایے راشدین کے کارناموں کا بیان ہے۔
शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी (मूल नाम सैयद क़ुतबुद्दीन अहमद इब्न अब्दुल रहीम इब्न वजीहुद्दीन इब्न मुअज़्ज़म इब्न मन्सूर, जिन्हें आमतौर पर अहमद वलीउल्लाह कहा जाता है; 21 फ़रवरी 1703, मुज़फ़्फ़रनगर – 20 अगस्त 1762, दिल्ली) भारतीय उपमहाद्वीप के महान मुहद्दिस, मुफस्सिर(तफ़सीरकार), फ़क़ीह, दार्शनिक, धर्मशास्त्री, विचारक और सुधारक थे। उन्होंने सात वर्ष की आयु में क़ुरआन हिफ़्ज़ किया और अपने पिता शाह अब्दुल रहीम मुहद्दिस देहलवी से धार्मिक शिक्षा, आध्यात्मिक प्रशिक्षण और बीअत एवं खलीफ़ा की अनुमति प्राप्त की। बाद में वे हिजाज़ गए और शैख़ अबू ताहिर मदनी तथा अन्य विद्वानों से हदीस, फ़िक़्ह और तसव्वुफ़ की शिक्षा प्राप्त की और औपचारिक इजाज़त हासिल की। सूफ़ी परंपरा में वे नक़्शबंदी–मुजद्ददी सिलसिले से जुड़े थे और विशेष रूप से नक़्शबंदी अबुल-उलैया शाखा से भी सम्बद्ध थे, जिसकी आध्यात्मिक परंपरा को उन्होंने आगे बढ़ाया। उन्होंने धर्म को आम लोगों तक पहुँचाने के लिए क़ुरआन का फ़ारसी अनुवाद किया, जो उपमहाद्वीप में अपनी तरह का पहला व्यापक अनुवाद था। उनकी प्रमुख रचनाओं में हुज्जतुल्लाह अल-बलिग़ा, इज़ालतुल-ख़फ़ा अन ख़िलाफ़तुल-ख़ुलफ़ा, अल-क़ौलुल जमील, फ़ुयूदुल हरमैन और अल-इन्साफ़ शामिल हैं, जिनमें तफ़्सीर, हदीस, फ़िक़्ह, इतिहास और सूफ़ीवाद के विषय शामिल हैं। वे आध्यात्मिक विकास के साथ शरीअत और तरीक़त के सामंजस्य पर बल देते थे और बुद्धिमत्ता एवं दूरदर्शिता से समाज में व्याप्त नैतिक भ्रष्टाचार और गलतफ़हमियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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