aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
शाद की पैदाइश 11 दिसम्बर 1927 को होशियारपुर पंजाब में हुई. उनके पिता दर्दे नकोदरी भी शायर थे और हज़रत जोश मल्सियानी के शागिर्दों में से थे. घर के शेरी माहौल ने शाद को भी शायरी की तरफ़ उन्मुख कर दिया और वह बहुत छोटी उम्र से ही शेर कहने लगे. शाद की शिक्षा लाहौर में हुई. उन्होंने गवर्नमेंट हाईस्कूल चुनिया ज़िला लाहौर से फर्स्ट डिवीज़न में मैट्रिक का इम्तेहान पास किया. इसके नौकरी के सिलसिले में रावलपिंडी और जालंधर में रहे लेकिन जल्द ही सरकारी नौकरी छोड़कर लाहौर आ गये और वहां माहनामा ‘शालीमार’का सम्पादन करने लगे. विभाजन के बाद शाद कुछ मुद्दत कानपूर में रहे और यहां हफ़ीज़ होशियारपुरी के साथ मिलकर ‘चंदन’के नाम से एक पत्रिका निकाला. उस पत्रिका के बंद होजाने के बाद दिल्ली आ गये और बल्देव मित्र बिजली के मासिक ‘राही ‘ से सम्बद्ध हो गये. एक रिसाला ‘नुकूश‘ के नाम से भी निकाला. अंततह हाउसिंग एंड रेंट ऑफिस में नौकरी करली.
नरेश कुमार शाद के व्यक्तित्व के विभिन्न आयाम थे. वह अच्छे शायर भी थे ,गद्यकार भी.उन्होंने अनुवाद भी किये और कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया. नरेश जितने अधिक शेर कहने वाले शायर थे उतने ही अधिक शराब पीनेवाले भी .उनके लिए शायरी और शराब दोनों ज़िंदगी की बद्सूर्तियों को स्वीकार करने का माध्यम थीं . नरेश की शराब याद रखी गयी और उनकी शायरी भूला दी गयी. हालाँकि नरेश की ग़ज़लें ,नज़्में और कई नई पश्चिमी विधाओं में उनके रचनात्मक प्रयोग उनकी शायराना अहमियत को रोशन करते हैं.
काव्य संग्रह :बुतकदा,फरियाद , दस्तक, ललकार, आहटें, क़ाशें, आयाते जुनूं, फुवार, संगम, मेरा मुन्तखिब कलाम, मेरा कलाम नौ ब नौ, विजदान.
गद्य की पुस्तकें :सुर्ख हाशिये, राख तले, सिर्क़ा और तावारुद, डार्लिंग, जान पहचान, मुताला-ए-ग़ालिब और उसकी शायरी ,पांच मक़बूल शायर और उनकी शायरी ,पांच मक़बूल तंज़ व मिज़ाह निगार.
बाल साहित्य: शाम नगर में सिनेमा आया ,चीनी बुलबुल और समुन्द्री शहज़ादी.
20मई 1969 को शाद जमुना के किनारे मरे हुए पाये गये.