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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : शरफुद्दीन यहया मनेरी

संपादक : Shaikh zain Badar Arabi

प्रकाशक : मुंशी नवल किशोर, लखनऊ

मूल : लखनऊ, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1895

भाषा : Persian

श्रेणियाँ : पत्र, सूफ़ीवाद / रहस्यवाद, मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन

उप श्रेणियां : सुहरवर्दिय्या

पृष्ठ : 402

सहयोगी : सुमन मिश्रा

maktubaat-e-sharfuddin yahya maneri
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पुस्तक: परिचय

ہندوستان میں جن دو اشخاص کے خطوط کو قبولیت عامہ حاصل ہے ان میں ایک تو شیخ منیری کی ذات گرامی ہے اور دوسرے شیخ مجدد الف ثانی کے مکتوبات ہیں۔ شیخ منیری کے مکتوبات کے متعلق مولانا علی میاں ندوی رحمۃ اللہ علیہ دعوت وعزیمت میں لکھتے ہیں کہ انسان کے مقام اور مرتبہ قلب انسانی کی وسعت و رفعت، انسان کی صلاحیتوں، اس کی ترقی کے امکانات اور محبت کی قدر و قیمت کے متعلق لکھا گیا ہے۔ اس موضوع پر نظم میں حکیم سنائی، فرید الدین عطار، مولانا روم نے بہت کچھ فرمایا ہے لیکن نثر میں مخدوم الملک بہاری شیخ احمد شرف الدین یحییٰ منیری کے مکتوبات سے زیادہ موثر طاقتور اور بلیغ تحریر نظر سے نہیں گزری ہے۔

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लेखक: परिचय

हज़रत मख़दूम-ए-जहाँ शैख़ शरफ़ुद्दीन अहमद यहया  मनेरी आ’लमी शोहरत-याफ़्ता सूफ़ी और मुसन्निफ़ हैं।
आपका नाम अहमद, लक़ब शरफ़ुद्दीन, ख़िताब मख़दूम-ए-जहाँ और सुल्तानुल-मुहक़क़िक़ीन है। आपकी विलादत शा’बानुल-मुअ'ज़्ज़ज़म 661 हिज्री मुवाफ़िक़ 1263 ई’स्वी में मनेर शरीफ़ ज़िला' पटना में हुई।
आपका नसब हज़रत ज़ुबैर इब्न-ए-अ’ब्दुल मुत्तालिब से जा कर मिलता है।इस तरह आपका ख़ानदान हाशमी ज़ुबैरी है। आपके परदादा हज़रत इमाम मोहम्मद ताज फ़क़ीह अपने ज़माना के बड़े आ’लिम और नामवर फ़क़ीह थे।शाम से नक़्ल-ए-मकानी कर के बिहार के क़स्बा मनेर में क़याम-पज़ीर हुए और फिर अपनी औलाद को मनेर में छोड़ कर ख़ुद शहर-ए-मक्का लौट गए।
हज़रत मख़दूम-ए-जहाँ जब सिन्न-ए-शुऊ’र को पहुंचे तो वालिद-ए-माजिद हज़रत मख़दूम शैख़ कमालुद्दीन यहया मनेरी ने उनको मौलाना शरफ़ुद्दीन अबु तुवामा की मई'यत  में मज़ीद ता’लीम के लिए सुनारगाँव भेजा। मौलाना अबू तुवामा अपने वक़्त के बड़े मुम्ताज़ आ’लिम और मुहद्दिस थे। बा’ज़ असबाब की बिना पर देहली छोड़कर बंगाल का रुख़ किया। असना-ए- सफ़र मनेर में भी क़याम किया और यहीं आप उनके इ’ल्मी तबह्हुर से मुतअस्सिर हुए। मौलाना अबु तुवामा से तफ़्सीर,फ़िक़्ह, हदीस, उसूल, कलाम, मंतिक़, फ़ल्सफ़ा, रियाज़ियात-ओ-दीगर उ’लूम की ता’लीम हासिल की। ज़माना-ए-तालिब-ए-इ’ल्मी ही में मौलाना अबु तुवामा की साहिब-ज़ादी से आपकी शादी हुई।
आपको बैअ’त-ओ-ख़िलाफ़त हज़रत ख़्वाजा नजीबुद्दीन फ़िरदौसी से थी। आपसे सिलसिला-ए-फ़िरदौसिया की नश्र-ओ-इशाअ’त ख़ूब हुई। आपकी आ’लमी शोहरत मल्फ़ूज़ात और मक्तूबात-ए-सदी-ओ-दो-सदी से है। आज भी एक बड़ा तब्क़ा तसव्वुफ़ का हज़रत मख़दूम-ए-जहाँ की मक्तूबात का मुतालआ’ करता है।
आपका इंतिक़ाल 5 शव्वाल 786 हिज्री मुवाफ़िक़ 1380 ई’स्वी की शब में नमाज़-ए-इ’शा के वक़्त हुआ।

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