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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : आसी उल्दनी

संस्करण संख्या : 002

प्रकाशक : सिद्दीक़ बुक डिपो, लखनऊ

मूल : लखनऊ, भारत

प्रकाशन वर्ष : 1930

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी

उप श्रेणियां : व्याख्या

पृष्ठ : 517

सहयोगी : इदारा-ए-अदबियात-ए-उर्दू, हैदराबाद

mukammal sharah-e-deewan-e-ghalib
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पुस्तक: परिचय

غالب کی اہمیت اردو زبان میں وہی ہے جو حافظ شیرازی کی فارسی زبان میں۔ جس طرح سے حافظ شیرازی فارسی غزلیات کا سب سے بڑا شاعر ہے اسی طرح غالب اردو غزلیات کا امام ہے بلکہ غالب کی نثر کو اگر شامل کر لیا جائے تو شاید حافظ سے چند گام آگے نکل جائے۔ اردو زبان میں سب سے زیادہ پڑھا اور سمجھا جانے والا شاعر غالب ہی ہے اور اسی کو سب سے زیادہ سمجھایا گیا ہے۔ وہی سب سے زیادہ چھاپا گیا ہے۔ غالب کو اگرچہ اپنی فارسی دانی پر ناز تھا مگر شہرت انہیں ان کی اردو شاعری کی وجہ سے ملی جسے وہ "بے رنگ من "کہہ کر پکارتے تھے۔ زیر نظر کتاب دیوان غالب کی شرح ہے جو ردیف کے حساب سے مشرح کی گئی ہے۔ جس میں وہ سب سے پہلے شعر نقل کرتے ہیں پھر اس شعر کے مشکل الفاظ کی گرہ کھولتے ہیں پھر مضمون کی عقدہ کشائی کرتے ہیں اور شعر کے ہر ہر پہلو پر بات کرتے ہیں۔ اس لئے دیوان غالب کو سمجھنے کے لئے یہ ایک بہترین شرح ہے جو اردو کے شائقین اور غالب کے پڑھنے والوں کے لئے ایک بیش بہا تحفہ ہے۔ خیال رہے کہ کلام غالب کی مقبولیت کے پیش نظر کئی لوگوں نے ان کے کلام کی شرح کی ہے، زیر نظر شرح کو عبد الباری آسی نے انجام دیا ہے، جس میں مقدمہ کے تحت کچھ کام کی باتوں پرروشنی ڈالی گئی ہے۔

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लेखक: परिचय

अब्दुल बारीआसीकी शख़्सियतविभिन्न पहलुओं वाली थी। वो एक अच्छे शायर, क्लासिकी मुतून के व्याख्याकार, उपन्यासकार और अनुवादक थे। आसी का जन्म1893 को मेरठ में हुआ। उनके पिता शेख़ हसामुद्दीन मिर्ज़ा ग़ालिब के शागिर्द और एक अच्छे शायर थे। आसी ने अरबी-ओ-फ़ारसी की शिक्षा प्राप्त की और शाहजहाँ पुर के एक स्कूल में फ़ारसी के शिक्षक के तौर पर फ़राएज़ अंजाम दिए। कुछ वर्ष तक मोहम्मद अली जौहर के अख़्बार ‘हमदर्द’ में काम किया। उस के बाद वो लखनऊ में  नवलकिशोर प्रकाशन से वाबस्ता हो गए।

घर और आस-पास के शेरी माहौल ने शुरुआत ही से आसी की तबीअत को शायरी की तरफ़ माइल कर दिया था। आग़ाज़-ए-शायरी में मौलाना सिराज अहमद सिराज से इस्लाह ली फिर नातिक़ गुलावठी की शागिर्दी इख़्तियार कर ली। कुछ ग़ज़लें दाग़ देहलवी को भी दिखाईं।

ग़ालिब और हाफ़िज़ के कलाम की व्याख्या अब्दुल बारी आसी के अहम तरीन इल्मी कामों में से है। उन्होंने शायरात का एक तज़किरा भी लिखा जो नवलकिशोर प्रकाशन से ‘तज़कीरा-तुल-ख़वातीन’ के नाम से प्रकाशित हुआ।

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