aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
احمد فراز برصغیر ہندو پاک کے مائناز شاعروں میں شمار ہوتے ہیں۔ انہوں نے یہ مجموعہ افریقہ میں حریت پسندوں اور پاکستان میں جمہوریت پسندوں پر ہو ر ہے مظالم کے تناظر میں پیش کیا ہے۔ یہ تب کی بات ہے جب پاکستان میں فوجی آمریت شباب پر تھی۔ افریقہ کے جلاوطن جو اپنے لوگوں کی انقلابی جدو جہد میں قلمی حوالے سے شریک تھے اور جنوبی افریقہ کے تاریخی اور سیاسی کوائف پاکستان سے مختلف ہوتے ہوئے بھی کئی طرح کی مماثلت رکھتے تھے۔ جنوبی افریقہ میں سفید فام ،اقلیت نے جس ظلم اور ڈھٹائی سے مقامی سیاہ فام اکثریت کو انسانی توقیر اور حقوق سے محروم کر رکھا ہے اسی طرح پاکستان میں فوجی آمریت نے بھی ظالمانہ اور غاصبانہ رویہ سے اپنے ہی لوگوں کو محکوم بنارکھا ہے۔ فرق یہ ہے کہ وہاں بندوقیں حریت پرستوں پر چلتی ہیں اور پاکستان میں جمہوریت پسند دانشوروں ،سیاسی کارکنوں ، صحافیوں اور طلبہ پر چلتی ہیں۔ ایسے وقت میں جب خلق خدا ظلم اور استحصال کے خلا ف نبرد آزما ہو تو لکھنے والوں پر کیا ذمہ داری عائد ہوتی ہے ،اسی تناظر میں اشعار کے اس مجموعے کو پیش کیا گیا ہے۔ ٹائیٹل میں افریقی سیاہ فام پر سفید فام کی بربریت کو دکھایا گیا ہے۔
अहमद फ़राज़ 12 जनवरी 1931 को कोहाट के एक प्रतिष्ठित सादात परिवार में पैदा हुए उनका असल नाम सैयद अहमद शाह था। अहमद फ़राज़ ने जब शायरी शुरू की तो उस वक़्त उनका नाम अहमद शाह कोहाटी होता था जो बाद में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के मश्विरे से अहमद फ़राज़ हो गया। अहमद फ़राज़ की मातृभाषा पश्तो थी लेकिन आरम्भ से ही फ़राज़ को उर्दू लिखने और पढ़ने का शौक़ था और वक़्त के साथ उर्दू ज़बान व अदब में उनकी यह दिलचस्पी बढ़ने लगी। उनके पापा उन्हें गणित और विज्ञान की शिक्षा में आगे बढ़ाना चाहते थे लेकिन अहमद फ़राज़ का रुझान अदब व शायरी की तरफ़ था। इसलिए उन्होंने पेशावर के एडवर्ड कालेज से फ़ारसी और उर्दू में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की और विधिवत अदब व शायरी का अध्ययन किया। अहमद फ़राज़ ने अपना कैरियर रेडियो पाकिस्तान पेशावर में स्क्रिप्ट राइटर के रूप में शुरू किया मगर बाद में वह पेशावर यूनिवर्सिटी में उर्दू के उस्ताद नियुक्त हो गये। 1974 में जब पाकिस्तान सरकार ने एकेडमी आफ़ लेटर्स के नाम से देश की सर्वोच्च साहित्य संस्था स्थापित की तो अहमद फ़राज़ उसके पहले डायरेक्टर जनरल बनाये गये।
फ़राज़ अपने युग के सच्चे फ़नकार थे। सच्चाई और बेबाकी उनकी सृजनात्मक स्वभाव का मूल तत्व था। उन्होंने सरकार और सत्ता के भ्रष्टाचार के विरुद्ध हमेशा आवाज़ बुलंद की। जनरल ज़ियाउलहक़ के शासन को सख़्त निशाना बनाने के नतीजे में उन्हें गिरफ़्तार किया गया। वह छः साल तक कनाडा और युरोप में निवार्सन की पीड़ा सहते रहे।
फ़राज़ की शायरी जिन दो मूल भावनाओं, रवैयों और तेवरों से मिल कर तैयार होती है वह प्रतिरोध, हस्तक्षेप और रुझान हैं। उनकी शायरी से एक रुहानी, एक नव क्लासीकी, एक आधुनिक और एक बाग़ी शायर की तस्वीर बनती है। उन्होंने इश्क़ मुहब्बत और महबूब से जुड़े हुए ऐसे बारीक एहसासात और भावनावों को शायरी की ज़बान दी है जो अर्से पहले तक अनछुए थे।
फ़राज़ की शख़्सियत से जुड़ी हुई एक अहम बात यह है कि वह अपने दौर के सबसे लोकप्रिय शायरों में से थे। हिंद-पाक के मुशायरों में जितनी मुहब्बतों और दिलचस्पी के साथ फ़राज़ को सुना गया है उतना शायद ही किसी और शायर को सुना गया हो। फ़राज़ की क़ुबूलियत हर सतह पर हुई। उन्हें बहुत से सम्मान व पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया। उनको मिलने वाले कुछ सम्मान इस प्रकार हैं: ‘आदमजी अवार्ड’, ‘अबासीन अवार्ड’, ‘फ़िराक़ गोरखपुरी अवार्ड’(भारत), ‘एकेडमी ऑफ़ उर्दू लिट्रेचर अवार्ड’ (कनाडा), ‘टाटा अवार्ड जमशेदनगर’(भारत), ‘अकादमी अदबियात-ए-पाकिस्तान का ‘कमाल-ए-फ़न’ अवार्ड, साहित्य की विशेष सेवा के लिए ‘हिलाल-ए-इम्तियाज़’।
काव्य संग्रह- ‘जानाँ-जानाँ’, ‘ख़्वाब-ए-गुल परेशाँ है’, ‘ग़ज़ल बहा न करो’, ‘दर्द-ए-आशोब’, ‘तन्हा तन्हा’, ‘नायाफ़्त’, ‘नाबीना शहर में आईना’, ‘बेआवाज़ गली कूचों में’, ‘पस-ए-अंदाज़ मौसम’, ‘शब ख़ून’, ‘बोदलक’, ‘यह सब मेरी आवाज़ें हैं’, ‘मेरे ख़्वाब रेज़ा रेज़ा’, ‘ऐ इश्क़ जफ़ा पेशा’।
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