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बड़ी ही अँधेरी डगर है मियाँ

सलीम शीराज़ी

बड़ी ही अँधेरी डगर है मियाँ

सलीम शीराज़ी

MORE BYसलीम शीराज़ी

    बड़ी ही अँधेरी डगर है मियाँ

    जहाँ हम फ़क़ीरों का घर है मियाँ

    है फ़ुर्सत तो कुछ देर मिल बैठिए

    जुदाई से किस को मफ़र है मियाँ

    घरौंदे यहाँ रेत के मत बनाओ

    कि सैल-ए-हवा ज़ोर पर है मियाँ

    कभी बुत-शिकन थे पर अब ख़ुद-शिकन

    ये इल्ज़ाम भी अपने सर है मियाँ

    तो फिर कज-कुलाही पे इसरार क्यूँ

    अगर संग-बारी का डर है मियाँ

    कोई बच निकलने की सूरत नहीं

    ये आसेब हर मोड़ पर है मियाँ

    तो फिर रुख़ बदलने से क्या फ़ाएदा

    मुक़द्दर जब अंधा सफ़र है मियाँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : Tahreek Silver Jubilee Number (पृष्ठ 441)
    • रचनाकार : Gopal Mittal, Makhmoor Saeedi, Prem Gopal Mittal
    • प्रकाशन : Monthly Tahreek, 9, Ansari Market, Daryaganj, New Delhi-110002 (July, Aug., Sep. Oct. 1978,Volume No. 26,Issue No. 4,5,6,7,)
    • संस्करण : July, Aug., Sep. Oct. 1978,Volume No. 26,Issue No. 4,5,6,7,

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