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जो मिला करती थी मुझ को लकड़ियों की टाल पर

इफ़्तिख़ार क़ैसर

जो मिला करती थी मुझ को लकड़ियों की टाल पर

इफ़्तिख़ार क़ैसर

MORE BYइफ़्तिख़ार क़ैसर

    जो मिला करती थी मुझ को लकड़ियों की टाल पर

    ऐसी लड़की आज तक देखी नहीं है माल पर

    आँख में साए की ख़्वाहिश पेट में रोटी की भूक

    फिर भी कैसी ताज़गी थी फूल जैसे गाल पर

    उस को देखा तो उसे बस देखता ही रह गया

    जैसे इक ज़ख़्मी सी तितली एक टूटी डाल पर

    जाने कैसे उस को मेरी प्यास की पहुँची ख़बर

    लाई चाँदी से कटोरे सोने ऐसे थाल पर

    पतली पतली रोटियों को चोपड़ेगी हाथ से

    डाल कर तड़का वो मुझ को देगी पतली दाल पर

    मेरी नज़रों से छुपा कर उस से आँखें पोंछ लें

    उस ने मेरा नाम लिख रक्खा था जिस रूमाल पर

    स्रोत :
    • पुस्तक : اردو غزل کا مغربی دریچہ(یورپ اور امریکہ کی اردو غزل کا پہلا معتبر ترین انتخاب) (पृष्ठ 202)
    • प्रकाशन : کتاب سرائے بیت الحکمت لاہور کا اشاعتی ادارہ

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