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ग़ज़ल
जन्नत में तो नहीं अगर ये ज़ख़्म-ए-तेग़-ए-इश्क़
बदलेंगे तुझ को ज़िंदगी-ए-जावेदाँ से हम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
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ग़ज़ल
तू ही उतरेगा ख़राबों में फ़राज़-ए-अर्श से
हम तो बेहिस हो चुके हैं अब ये मंज़र देख कर
सरमद सहबाई
ग़ज़ल
वो तू कि अपने तईं कर चुका हमें तकमील
ये हम कि फ़िक्र-ए-ख़द-ओ-ख़ाल में पड़े हुए हैं