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ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
दिल दिया है जिस को वाइ'ज़ है हमें उस की तलाश
हूर-ए-जन्नत से शनासाई नहीं उल्फ़त नहीं
मोहम्मद विलायतुल्लाह
ग़ज़ल
हूर-ए-जन्नत की तमन्ना दिल में रखते हैं मगर
शैख़ जी का क़ौल है उल्फ़त का मैं क़ाइल नहीं
अनवारुल हक़ अहमर लखनवी
ग़ज़ल
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
आँख उठा कर न कभी देखता मैं उस को मगर
हूर-ए-जन्नत पे मुझे होता है धोका उन का
मुंशी शिव परशाद वहबी
ग़ज़ल
ख़ुदा के वास्ते महशर में बे-पर्दा न हो जाना
तुम्हीं पर हूर-ए-जन्नत का कहीं धोका न हो जाए
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
पौ फटते ही रियाज़-ए-जहाँ ख़ुल्द बन गया
ग़िल्मान-ए-महर साथ लिए आई हूर-ए-सुब्ह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
'नरेश' अक़सा-ए-आलम जगमगा उट्ठे निगाहों में
तसव्वुर में मिरे जिस दम मिरा वो रश्क-ए-हूर आया
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
वाइ'ज़ शराब-ओ-हूर की उल्फ़त में ग़र्क़ है
है सर से पाँव तक ये सितम-गर तमाम हिर्स
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
न काम आलम से है हम को न हूर-उल-ऐन-ए-जन्नत से
है इक मदहोश दाना-तर ब-दिल-होशियार से मतलब
मरदान सफ़ी
ग़ज़ल
ये नमाज़ों में ख़याल-ए-जन्नत-ओ-हूर-ओ-क़सूर
ज़ाहिद-ए-कज-बीं अभी नौ-मश्क़ है कामिल नहीं
क़ैसर अमरावतवी
ग़ज़ल
नासेह-ए-मुश्फ़िक़ तुझ को मुबारक कौसर-ओ-जन्नत हूर-ओ-मलक
हम को दिल से नाज़ है इस पर हम उन के कहलाए तो