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नज़्म
नीले पर्बत ऊदी धरती, चारों कूट में तू ही तू
तुझ से अपने जी की ख़ल्वत तुझ से मन का मेला है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
देखो हम ने कैसे बसर की इस आबाद ख़राबे में
शहर-ए-तमन्ना के मरकज़ में लगा हुआ है मेला सा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जहाँ में बज़्म-गह-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का मेला
बिना-ए-लुत्फ़-ओ-मोहब्बत, रिवाज-ए-मेहर-ओ-वफ़ा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
पस-मंज़र में क्या होता है नज़र कहाँ जाती है
सामने जो कुछ है रंगों आवाज़ों चेहरों का मेला है!
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
सूरज डूब के एक अँधेरी काली रात को लाएगा
लाखों अन-होनी बातों का मेला ध्यान में लाएगा
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
नक़्श अब तक तिरी अज़्मत का है बैठा दिल में
तू वो देवी है, तिरा लगता है मेला दिल में