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नज़्म
ख़ुश-आमदीद
हार और जीत के मफ़्हूम में क्या रक्खा है
जीत कर भी कोई हारा है तुम्हारी ख़ातिर
अंजुम आज़मी
नज़्म
ख़ुश-आमदीद
हार और जीत के मफ़्हूम में क्या रक्खा है
जीत कर भी कोई हारा है तुम्हारी ख़ातिर
अंजुम आज़मी
शेर
रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं
चराग़ जल रहा है और कोई मकान में नहीं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं
चराग़ जल रहा है और कोई मकान में नहीं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
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शेर
हर इश्क़ के मंज़र में था इक हिज्र का मंज़र
इक वस्ल का मंज़र किसी मंज़र में नहीं था
अक़ील अब्बास जाफ़री
ग़ज़ल
बाज़ी में मोहब्बत की अक्सर कुछ मरहले ऐसे आए हैं
जब जीत के भी हम हार गए और हार के हम कुछ पा भी गए