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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
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ग़ज़ल
तेरे दर से मैं उठा लेकिन न मेरा दिल उठा
छोड़ कर हो जिस तरह कासा कोई साइल उठा
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
दर-ब-दर मुझ को किया दर से उठा कर अपने
तेरा आशिक़ तो मैं था शहर में तश्हीर भी था